मसूद
हम तुम होंगे बादल होगा
रक्स में सारा जंगल होगा…
गायक:मसूद मलिक
जीवन के ऐसे क्षण जो स्व (ख़ुद) से निकलकर विस्तार में जाने को विवश कर देते हैं उन्हीं क्षणों की अभिव्यक्ति का आयोजन
रविवार, 31 अगस्त 2008
शुक्रवार, 29 अगस्त 2008
दीपक राग चाहत अपनी…(शाहेदा परवेज़ की आवाज़ में)
शाहेदा
दीपक राग चाहत अपनी, काहे सुनायें तुम्हें
हम तो सुलगते ही रहते हैं, कियों सुलगायें तुम्हें
गायिक:शाहेदा परवेज़
दीपक राग चाहत अपनी, काहे सुनायें तुम्हें
हम तो सुलगते ही रहते हैं, कियों सुलगायें तुम्हें
गायिक:शाहेदा परवेज़
बुधवार, 27 अगस्त 2008
वह बातें तेरी वह फ़साने तेरे…(मलिका पुखराज की आवाज़)
सोमवार, 25 अगस्त 2008
ऐ मेरे हमनशीं चल कहीं और चल…(मुन्नी बेग़म की आवाज़)
मुन्नी
ऐ मेरे हमनशीं चल कहीं और चल, इस चमन में अब अपना गुज़ारा नहीं
बात होती गुलों तक तो सह लेते हम, अब तो कांटों पे भी हक़ हमारा नहीं
गायिका: मुन्नी बेग़म
ऐ मेरे हमनशीं चल कहीं और चल, इस चमन में अब अपना गुज़ारा नहीं
बात होती गुलों तक तो सह लेते हम, अब तो कांटों पे भी हक़ हमारा नहीं
गायिका: मुन्नी बेग़म
कभी हम भी खूबसूरत थे…(नैयरा नूर की आवाज़)
नैयरा
कभी हम भी खूबसूरत थे किताबों में बसी खुशबू की मानिंद
सांस साकिन साकिन थी बहुत अनकहे लफ़्ज़ों से तस्वीरें बनाते थे
गायिका: नैयरा नूर
कभी हम भी खूबसूरत थे किताबों में बसी खुशबू की मानिंद
सांस साकिन साकिन थी बहुत अनकहे लफ़्ज़ों से तस्वीरें बनाते थे
गायिका: नैयरा नूर
रविवार, 24 अगस्त 2008
कहानी-वापसी……(डा0 मेराज अहमद की आवाज़ में)
वापसी
लेखक: डा0 मेराज अहमद
स्वर: डा0 मेराज अहमद
आशा और विश्वाश की कहानी, "वापसी" एक ऐसे आदमी की ज़िन्दगी की दासतान है जो चालीस साल बाद अपनी ज़मीन पर लौटकर आता है। उसके ज़िन्दगी के प्रति सकारात्मक रवैये के कारण उसकी जड़ें ज़मीन पकड़ लेती हैं। वह अपनी बाक़ी ज़िन्दगी को क्या खूब जीता है और भरपूर जीता है।
लेखक: डा0 मेराज अहमद
स्वर: डा0 मेराज अहमद
शनिवार, 23 अगस्त 2008
शुक्रवार, 22 अगस्त 2008
हंगामा है क्यूं बरपा, थोड़ी सी जो पी ली है…(ग़ुलाम अली की आवाज़)
ग़ुलाम अली
हंगामा है क्यूं बरपा, थोड़ी सी जो पी ली है
डाका तो नही डाला, चोरी तो नहीं की है……
हंगामा है…………………………
गायक: ग़ुलाम अली
हंगामा है क्यूं बरपा, थोड़ी सी जो पी ली है
डाका तो नही डाला, चोरी तो नहीं की है……
हंगामा है…………………………
गायक: ग़ुलाम अली
मैने पैरों में पायल तो बांधी नही…(फ़रीदा खानम की आवाज़)
बुधवार, 20 अगस्त 2008
दिल के अफ़साने निगाहों की ज़ुबां तक पहुंचे…(नूर जहां की आवाज़)
नूर
दिल के अफ़साने निगाहों की ज़ुबां तक पहुंचे
बात चलने की भी है, अब देखें कहां तक पहुंचे
गायिका: नूर जहां
दिल के अफ़साने निगाहों की ज़ुबां तक पहुंचे
बात चलने की भी है, अब देखें कहां तक पहुंचे
गायिका: नूर जहां
मस्त नज़रों से अल्ला बचाए…(नुसरत फ़तेह अली खां की आवाज़)
नुसरत
मैने मासूम बहारों में तुझे देखा है
मैने पुर-नूर सितारों में तुझे देखा है……
मस्त नज़रों से अल्ला बचाए……………
गायक: नुसरत फ़तेह अली खां
मैने मासूम बहारों में तुझे देखा है
मैने पुर-नूर सितारों में तुझे देखा है……
मस्त नज़रों से अल्ला बचाए……………
गायक: नुसरत फ़तेह अली खां
चले तो कट ही जायेगा सफ़र…(मुसर्रत नज़ीर की आवाज़)
मुसर्रत
चले तो कट ही जायेगा सफ़र, आहिस्ता आहिस्ता
हम उसके पास जाते हैं मगर, आहिस्ता आहिस्ता
गायिका: मुसर्रत नज़ीर
चले तो कट ही जायेगा सफ़र, आहिस्ता आहिस्ता
हम उसके पास जाते हैं मगर, आहिस्ता आहिस्ता
गायिका: मुसर्रत नज़ीर
मंगलवार, 19 अगस्त 2008
थक गया हूं अब तो उम्मीद्…(हारिस मुजीब)
हारिस
गीत "उम्मीद" अलीगढ़ के कुछ जोशीले नौजवानों की शौकिया कोशिश है, इसे आवाज़ दी है "हारिस मुजीब" ने, और बोल "काशिफ़" और "शफ़ीक़" के हैं। यह सभी नौजवान अलीगढ़ मुस्लिम विश्विद्दयालय अलीगढ़ सम्बद्ध ज़ाकिर हुसेन कालेज आफ़ इन्जीनियरिंग एन्ड टेक्नालोजी के इलेक्ट्रिकल इन्जीनियरिंग विभाग के छात्र हैं। हौसला अफ़्ज़ायी के लिये प्रतिक्रियाओं का स्वागत है। (मेराज अहमद)
दोस्ती जब किसी से की जाये…(जगजीत सिंह)
जगजीत
दोस्ती जब किसी से की जाये
दुश्मनों की भी राये ली जाये
इस गज़ल के बोल के लिये यहां क्लिक करें।
गायक: जगजीत सिंह
शायर: राहत इंदौरी
दोस्ती जब किसी से की जाये
दुश्मनों की भी राये ली जाये
इस गज़ल के बोल के लिये यहां क्लिक करें।
गायक: जगजीत सिंह
शायर: राहत इंदौरी
गुरुवार, 14 अगस्त 2008
बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जायेगी…(जगजीत सिंह की आवाज़ में)
पल दो पल हैं प्यार के……(नुसरत फ़तेह अली खां की आवाज़ में)
नुसरत
जैसे जीवन प्यार सजावे, जैसे फूल से खुशबू आवे
होती है प्रीत दिल हार के, दुनियां है सूनी बिन यार के
पल दो पल हैं प्यार के………
गायक: नुसरत फ़तेह अली खां
बुधवार, 13 अगस्त 2008
सारे जहां से अच्छा, हिन्दोस्तां हमारा हमारा,…(लता जी की आवाज़ में सुनें)
लता
सारे जहां से अच्छा, हिन्दोस्तां हमारा हमारा,…
हम बुलबुलें हैं उसकी, ये गुलसितां हमारा……
गायक: लता मंगेश्कर
शायर: सर अल्लामा इक़बाल
सारे जहां से अच्छा, हिन्दोस्तां हमारा हमारा,…
हम बुलबुलें हैं उसकी, ये गुलसितां हमारा……
गायक: लता मंगेश्कर
शायर: सर अल्लामा इक़बाल
चिटठी आयी है, आयी है, वतन से चिटठी आयी है…(पंकज उदास की आवाज़ में)
आज़दी के शुभ अवसर पर पेश है यह गीत…
चिटठी आयी है, आयी है, वतन से चिटठी आयी है
बड़े दिनों के बाद, हम बे वतनों की याद, वतन से मिटटी आयी है……
पंकज
गायक: पंकज उदास
चिटठी आयी है, आयी है, वतन से चिटठी आयी है
बड़े दिनों के बाद, हम बे वतनों की याद, वतन से मिटटी आयी है……
पंकज
गायक: पंकज उदास
गुरुवार, 7 अगस्त 2008
सावन की भीगी रातों में…
नुसरत
सावन की भीगी रातों में जब फूल खिले बरसातों में
जब छेड़ें सखियां बातों में, तेरी यादां…………
गायक: नुसरत फ़तेह अली खां
सावन की भीगी रातों में जब फूल खिले बरसातों में
जब छेड़ें सखियां बातों में, तेरी यादां…………
गायक: नुसरत फ़तेह अली खां
जाने जां तू है कहां
नुसरत
जाने जां तू है कहां, सांसों में तू, आंखों में तू, गीतों में तू, धड़कन में तू।
तू सपना है या कोई साया, तुझे मैनें दिल में बसाया॥ तेरी याद, तेरी याद…………।
गायक: नुसरत फ़तेह अली खां
जाने जां तू है कहां, सांसों में तू, आंखों में तू, गीतों में तू, धड़कन में तू।
तू सपना है या कोई साया, तुझे मैनें दिल में बसाया॥ तेरी याद, तेरी याद…………।
गायक: नुसरत फ़तेह अली खां
बुधवार, 6 अगस्त 2008
अपने हाथों कि लकीरों में बसा ल्रे मुझको…
जगजीत
अपने हाथों कि लकीरों में बसा ल्रे मुझको।
मैं हूं तेरा तू नसीब अपना बना ले मुझको॥
गायक: जगजीत सिंह
अपने हाथों कि लकीरों में बसा ल्रे मुझको।
मैं हूं तेरा तू नसीब अपना बना ले मुझको॥
गायक: जगजीत सिंह
कभी मैखाने तक जाते हैं हम और कम भी पीते हैं
पंकज
कभी मैखाने तक जाते हैं हम, और कम भी पीते हैं।
घटा ज़ुल्फ़ों की छा ज़ाए तो, बे मौसम भी पीते हैं।॥
गायक: पंकज उदास
कभी मैखाने तक जाते हैं हम, और कम भी पीते हैं।
घटा ज़ुल्फ़ों की छा ज़ाए तो, बे मौसम भी पीते हैं।॥
गायक: पंकज उदास
हमें तो अब भी वो गुज़रा ज़माना याद आता है…
ग़ुलाम
हमें तो अब भी वो गुज़रा ज़माना याद आता है।
तुम्हें भी क्या कभी कोई दिवाना याद आता है॥
गायक: गुलाम अली
हमें तो अब भी वो गुज़रा ज़माना याद आता है।
तुम्हें भी क्या कभी कोई दिवाना याद आता है॥
गायक: गुलाम अली
मंगलवार, 5 अगस्त 2008
चलो पी लें कि यार आये न आये…(पंकज उदास)
पंकज
खोते न हम जो होश उन्हें घर बुला के पी,
या फिर बुतों को सामने अपने बिठा के पी…
चलो पी लें कि यार आये न आये
गायक: पंकज उदास
खोते न हम जो होश उन्हें घर बुला के पी,
या फिर बुतों को सामने अपने बिठा के पी…
चलो पी लें कि यार आये न आये
गायक: पंकज उदास
आहिस्ता कीजिये बातें, धड़कनें कोई सुन रहा होगा
पंकज
आहिस्ता कीजिये बातें, धड़कनें कोई सुन रहा होगा
लफ़्ज़ गिरने न पाएं होठों से, वक़्त के हाथ इन को चुन लेंगे
गायक: पंकज उदास
आहिस्ता कीजिये बातें, धड़कनें कोई सुन रहा होगा
लफ़्ज़ गिरने न पाएं होठों से, वक़्त के हाथ इन को चुन लेंगे
गायक: पंकज उदास
सोमवार, 4 अगस्त 2008
पिया रे पिया रे… (नुसरत फ़तेह अली खां )
नुसरत
पिया रे पिया रे ,पिया रे पिया रे
हो हो तारे बिना लागे नाहीं म्हारा जिया रे
गायक: नुसरत फ़तेह अली खां
पिया रे पिया रे ,पिया रे पिया रे
हो हो तारे बिना लागे नाहीं म्हारा जिया रे
गायक: नुसरत फ़तेह अली खां
रविवार, 3 अगस्त 2008
अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है, छुपाएं कैसे
शनिवार, 2 अगस्त 2008
अन्तराल-कहानी
अन्तराल
कहानी: अन्तराल
लेखक: मेराज अहमद
स्वर: मेराज अहमद
कहानी: अन्तराल
लेखक: मेराज अहमद
स्वर: मेराज अहमद
यह कहानी पीढ़ी अन्तराल से उपजी द्वन्द्व भरी मानसिकता का उद्घाटन करती है, लेकिन इसका खास पहलू यह है कि इसमें जीवन के सकारात्मक आयामों की अभिव्यक्ति को तरजीह दी गई है।
अभी वो कमसिन उभर रहा है, अभी है उस पर शबाब आधा
जगजीत
अभी वो कमसिन उभर रहा है, अभी है उस पर शबाब आधा
अभी जिगर में खलिश है आधी, अभी है मुझ पर……
गायक: जगजीत सिंह
अभी वो कमसिन उभर रहा है, अभी है उस पर शबाब आधा
अभी जिगर में खलिश है आधी, अभी है मुझ पर……
गायक: जगजीत सिंह
आह को चाहिये इक उम्र असर होने तक
जगजीत
आह को चाहिये इक उम्र असर होने तक
कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होने तक
आशिक़ी सब्र-तलब और तमन्ना बेताब
दिल का क्या रंग करूँ ख़ून-ए-जिगर होने तक
हम ने माना के तग़ाफ़ुल न करोगे लेकिन
ख़ाक हो जायेंगे हम तुमको ख़बर होने तक
ग़म-ए-हस्ती का 'असद' किस से हो जुज़ मर्ग इलाज
शम्म'अ हर रंग में जलती है सहर होने तक
*****************************
कवि: मिर्ज़ा गालिब
गायक: जगजीत सिंह
आह को चाहिये इक उम्र असर होने तक
कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होने तक
आशिक़ी सब्र-तलब और तमन्ना बेताब
दिल का क्या रंग करूँ ख़ून-ए-जिगर होने तक
हम ने माना के तग़ाफ़ुल न करोगे लेकिन
ख़ाक हो जायेंगे हम तुमको ख़बर होने तक
ग़म-ए-हस्ती का 'असद' किस से हो जुज़ मर्ग इलाज
शम्म'अ हर रंग में जलती है सहर होने तक
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कवि: मिर्ज़ा गालिब
गायक: जगजीत सिंह
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