पंकज
बेपर्दा नज़र आयी कल जो चन्द बीबियां
अकबर ज़मीं में गैरत-ए-क़ौमी से गड़ गया
पूछा जो मैने आप का पर्दा वो क्या हुआ
कहने लगीं के अक़्ल पे मर्दों की पड़ गया…
निकलो न बेनक़ाब ज़माना खराब है
और उसपे ये शबाब, ज़मान खराब है
सब कुछ हमें खबर है नसीहत न कीजिये
क्या होंगे हम खराब, ज़माना खराब है
मतलब छुपा हुआ है यहां हर सवाल में
तू सोचकर जवाब, ज़माना खराब है
राशिद तुम आ गये हो ना आखिर फ़रेब में
कहते न थे जनाब, ज़माना खराब है
कवि: मुमताज़ राशिद
गायक: पंकज उदास
Bahot Khoob.
जवाब देंहटाएंहोगा ज़माना ख़राब
जवाब देंहटाएंलेकिन यह प्रस्तुति बहुत अच्छी है साहब.
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शुक्रिया
डॉ.चन्द्रकुमार जैन